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मैं, पापा और हमारी 'प्रिया'

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आगे आगे दौड़ती ज़िंदगी और दूर कहीं पीछे छूट गया मेरा घर, मेरे पापा और उनकी पीली स्कूटर 'प्रिया', जिसपे बिठा के उन्होने मुझे बचपन में दुनिया घुमाई... बचपन की कितनी सारी खुशनुमा यादें हैं जो सिर्फ़ पापा की स्कूटर पे बैठ के पुर शहर भर के चक्कर काटने से जुड़ी हैं..जब भी पापा स्कूटर स्टेंड से उतारते तो मैं और मेरा भाई घर के किसी भी कोने मे हों,  तुरंत चौकन्ने हो जाते थे की कहाँ गयी मेरी चप्पल..?? :p इस से पहले की पापा अकेले ही निकल जाएँ हम दोनो को अपनी अपनी चप्पल ढूंढ के रेडी रहना होता था.. :D :D फिर बस धीरे से मुस्कुराते हुए पापा की नज़र के आगे आ जाना होता था और पापा पूछते ही थे.."चलोगे क्या??" .........और हम दोनो अपने दाँत चीकार देते..फिर क्या, भैया पीछे बैठ जाते और हम आगे खड़े होते थे.. :)) पापा को जाना कहीं भी हो, स्कूटर लौट के आती कटरा के चन्द्रा स्वीट्स और नेतराम के सामने से ही थी...उस ट्रिप का सबसे सुहाना पार्ट ही यही होता था जब पापा अपना सब काम-वाम ख़तम कर के अपनी स्कूटर मैंगो शेक की दुकान के बाहर खड़ी कर देते थे..जहाँ हम दोनो को बोलना नही पड़ता था पा...