याद है, आज 25 नवंबर है... :)
आज के दिन मैने पहली बार तुम्हारी आवाज़ सुनी थी.…   तुम्हारी संजीदा आवाज़, तुम्हारे लफ्ज़ जो थम थम के निकल रहे थे और जिनके पीछे तुम्हारा मुस्कुराता हुआ, प्यारा सा चेहरा भी मुझे दिख रहा था, पर ज़रा धुँधला धुँधला…
     वो वक़्त याद कर रही हूँ जब मुझे समझ नही आता था की 'हेलो' के आगे तुमसे क्या बात करूँगी..और अब देखो तो, तुमसे कहने को इतना कुछ होता है कि मेरे लफ्ज़ ही नहीं  थमते!
कैसे बदल गया इतना कुछ इतनी जल्दी और इतना खूबसूरत बना गया हमारे जीवन को.काश ये खूबसूरती यूँ ही बरकरार रहे हमेशा... हमेशा..

ये मौसम और ये तारीख तुम्हारे होने का अहसास दिलाते हैं... 
उस वक़्त, तुम्हारे नहीं होकर भी होने का !

देखो, उन दिनों को याद करते करते मैने तुम्हारे लिए कुछ लिखा है…



"जब सुबहें कुहरे में लिपटी ठंडी हवाओं से मुझे जगाती थी,
और दोपहर तुमसे मीलों दूर होने के उदासी में बीत जाती थी,
ढलती शाम के अंधेरों में धुन्ध बनकर,
एक परछाई सी लहराती थी...
मै जब जब हाथ बढ़ाकर उसे छूती,
इन हथेलियों से खुश्बू तुम्हारी ही आती थी."

                                - तुम्हारी दीप्ति :)

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